आरती युगलकिशोर की कीजै |
तन मन धन न्योछावर कीजै || टेक ||
गौरश्याम मुख निरखत रीजे |
हरि का स्वरुप नयन भरि पीजै ||
रवि शशि कोटि बदन की शोभा |
ताहि निरखि मेरो मन लोभा ||
ओडे नील पीत पट सारी |
कुंजबिहारी गिरिवरधारी ||
फूलन की सेज फूलन की माला |
रतन सिहांसन बैठे नंदलाला ||
कंचनथार कपूर की बाती |
हरि आये निर्मल भई छाती ||
श्री पुरषोतम गिरिवरधारी |
आरती करें सकल ब्रज नारी ||
नंदनंदन ब्रजभान, किशोरी |
परमानंद स्वामी अविचल जोरी ||
बुधवार वर्त की विधि इस प्रकार है:
- ग्रह शांति तथा सर्व – सुखो की इच्छा रखने वालो को बुधवार का व्रत करना चाहिए |
- रात दिन में एक ही बार भोजन करे |
- व्रत में हरी वस्तुओ का प्रयोग करना उत्तम है |
- व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल – पत्र आदि से करनी चाहिए |
- कथा के बीच में नहीं उठना चाहिए |