जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा। कीरति नंदिनी शोभा धामा ।
नित्य विहारिनी श्याम अधारा। अमित मोद मंगल दातारा ।
राम विलासिनी रस विस्तारिणी। सहचरी सुभग यूथ मन भावनि ।
करुणा सागर हिय उमंगिनी। ललितादिक सखियन की संगिनी ।
दिनकर कन्या कुल विहारिनी। कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनी ।
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावै। राधा राधा कही हरषावैं ।
मुरली में नित नाम उचारें। तुम कारण लीला वपु धारें ।
प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी। श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी ।
नवल किशोरी अति छवि धामा। द्दुति लधु लगै कोटि रति कामा ।
गोरांगी शशि निंदक वंदना। सुभग चपल अनियारे नयना ।
जावक युत युग पंकज चरना। नुपुर धुनी प्रीतम मन हरना ।
संतत सहचरी सेवा करहिं। महा मोद मंगल मन भरहीं ।
रसिकन जीवन प्राण अधारा। राधा नाम सकल सुख सारा ।
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा। ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा ।
उपजेउ जासु अंश गुण खानी। कोटिन उमा राम ब्रह्मिनी ।
नित्य धाम गोलोक विहारिन। जन रक्षक दुःख दोष नसावनि ।
शिव अज मुनि सनकादिक नारद। पार न पायें शेष अरु शारद ।
राधा शुभ गुण रूप उजारी। निरखि प्रसन्न होत बनवारी ।
ब्रज जीवन धन राधा रानी। महिमा अमित न जाय बखानी ।
प्रीतम संग दे ई गलबाँही। बिहरत नित वृन्दावन माँहि ।
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा। एक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।
श्री राधा मोहन मन हरनी। जन सुख दायक प्रफुलित बदनी ।
कोटिक रूप धरे नंद नंदा। दर्श करन हित गोकुल चंदा ।
रास केलि करी तुम्हें रिझावें। मन करो जब अति दुःख पावें ।
प्रफुलित होत दर्श जब पावें। विविध भांति नित विनय सुनावे ।
वृन्दारण्य विहारिनी श्यामा। नाम लेत पूरण सब कामा ।
कोटिन यज्ञ तपस्या करहु। विविध नेम व्रतहिय में धरहु ।
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें। जब लगी राधा नाम न गावें ।
वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा। लीला वपु तब अमित अगाधा ।
स्वयं कृष्ण पावै नहीं पारा। और तुम्हैं को जानन हारा ।
श्री राधा रस प्रीति अभेदा। सादर गान करत नित वेदा ।
राधा त्यागी कृष्ण को भजिहैं। ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं ।
कीरति कुँवरि लाड़िली राधा। सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा ।
नाम अमंगल मूल नसावन। त्रिविध ताप हर हरी मनभावना ।
राधा नाम लेइ जो कोई। सहजहि दामोदर बस होई॥
राधा नाम परम सुखदाई। भजतहीं कृपा करहिं यदुराई ।
यशुमति नंदन पीछे फिरेहै। जी कोऊ राधा नाम सुमिरिहै ।
रास विहारिनी श्यामा प्यारी। करहु कृपा बरसाने वारी ।
वृन्दावन है शरण तिहारी। जय जय जय वृषभानु दुलारी ।