श्री वीरभद्र चालीसा - Shri Veerbhadra Chalisa

श्री वीरभद्र चालीसा

जय-जय शिव नन्दिन जय जगवन्दरन । जय-जय शिव पार्वती नन्दवन ॥
जय पार्वती प्राण दुलारे। जय-जय भक्तदन के दु:ख टारे॥

कमल सदृश्य नयन विशाला । स्वर्ण मुकुट रूद्राक्षमाला॥

ताम्र तन सुन्दार मुख सोहे। सुर नर मुनि मन छवि लय मोहे॥

मस्तरक तिलक वसन सुनवाले। आओ वीरभद्र कफली वाले॥

करि भक्त‍न सँग हास विलासा ।पूरन करि सबकी अभिलासा॥

लखि शक्तिस की महिमा भारी।ऐसे वीरभद्र हितकारी॥

ज्ञान ध्याुन से दर्शन दीजै।बोलो शिव वीरभद्र की जै॥

नाथ अनाथों के वीरभद्रा। डूबत भँवर बचावत शुद्रा॥

वीरभद्र मम कुमति निवारो ।क्षमहु करो अपराध हमारो॥

वीरभद्र जब नाम कहावै ।आठों सिद्घि दौडती आवै॥

जय वीरभद्र तप बल सागर । जय गणनाथ त्रिलोग उजागर ॥

शिवदूत महावीर समाना । हनुमत समबल बुद्घि धामा ॥

दक्षप्रजापति यज्ञ की ठानी । सदाशिव बिन सफल यज्ञ जानी॥

सति निवेदन शिव आज्ञा दीन्ही । यज्ञ सभा सति प्रस्थारन कीन्ही ॥

सबहु देवन भाग यज्ञ राखा । सदाशिव करि दियो अनदेखा ॥

शिव के भाग यज्ञ नहीं राख्यौद। तत्क्षअण सती सशरीर त्याणगो॥

शिव का क्रोध चरम उपजायो। जटा केश धरा पर मार्‌यो॥

तत्क्ष ण टँकार उठी दिशाएँ । वीरभद्र रूप रौद्र दिखाएँ॥

कृष्णष वर्ण निज तन फैलाए । सदाशिव सँग त्रिलोक हर्षाए॥

व्योणम समान निज रूप धर लिन्हो । शत्रुपक्ष पर दऊ चरण धर लिन्होन॥

रणक्षेत्र में ध्वँास मचायो । आज्ञा शिव की पाने आयो ॥

सिंह समान गर्जना भारी । त्रिमस्तोक सहस्र भुजधारी॥

महाकाली प्रकटहु आई । भ्राता वीरभद्र की नाई ॥

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