ॐ गनपत वीर ! बसे मसान, जो फल माँगूँ , फल आन |
गणपत देखे गजपत डरे , गनपत के छात्र से बादशाह डरे |
मुख देखे राजा – प्रजा डरे, हाथ चढ़े सिंदूर |
ओैलिया गौरी का पूत-गणेश! गुग्गुल की धरूँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि लाये गनपत घनेरी |
जय गिरनार – पति! ओम नमो स्वाहा ||
विधि :-
इस मंत्र की सिद्धि के लिए साधक अपने साथ धूप, दीपक, घी, सिंदूर, बेसन के लड्डू लेकर बुधवार, गुरूवार या शनिवार या इन दिनों में जब यदि ग्रहण, पुष्य- नक्षत्र, नर्वार्थ-सिद्धि योग पड़े तो उतम, किसी एकान्त स्थान या देवालय में जहाँ लोगों का आवागमन कम हो जाकर श्री गणेश जी की षोडशोपचारों से पूजा करें| घी का दीप जलाकर, अपने सामने ए़क फुट की ऊंचाई पर रखें| सिंदूर अर्पित कर लड्डूयों का भोग लगाये और प्रतिदिन ए़क सौ आठ बार इस मंत्र का जाप करें| भोग लगाये हुए लड्डूयों के प्रसाद को बच्चों में बाँट दिया करें उक्त कर्म चलीसा दिन तक करें|
चालीसवें दिन सवा किलो लड्डूयों का प्रसाद रखें और मंत्र जप समाप्ति पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ दक्षिणा दें| बचे हुए सिन्दूर को किसी डिब्बी में सम्भाल कर रख लें और ए़क सप्ताह बाद इसका उपयोग करें| आवश्यकता पर इस सिन्दूर को सात बार उपरोक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर अपने माथे पर टीका लगायें, सभी कार्य शिद्ध होंगे|