भैरो उचके भैरो कूदे भैरो सोर मचावे ||
मेरा ……. अमुक कार्य ……. ना करे तो कालिका का पूत न कहावे |
शब्द साँचा, पिण्ड काँचा | फुरे मंत्र ईश्वरो वाचा ||
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भैरो उचके भैरो कूदे भैरो सोर मचावे ||
मेरा ……. अमुक कार्य ……. ना करे तो कालिका का पूत न कहावे |
शब्द साँचा, पिण्ड काँचा | फुरे मंत्र ईश्वरो वाचा ||
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ॐ नमो भगवती पद्म पद्मावती, ॐ ह्रीं ॐ, ॐ पूर्वाय दक्षिणाय पश्चिमाय उतराय आष सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा ||
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ॐ नमो आदेश गुरु का | गणपति बीर , बसे मसाने | जो-जो
माँगू, सो सो आण | पाँच लाडू, सिर सिन्दूर, हाटि का माँटी,
मसाण की खेप | ॠद्धि सिद्धि मेरे पास भयावे | शब्द साँचा,
पिण्ड काँचा | फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ||
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पर्वत व्यायी अंजनी पुत्र जने हनुमंत, रोट लंगोट दरिया ही भुजा|
लोंग सुपारी जायफल पान का बीड़ा कोने लिया, या साहब जो लिया या किसको पूजा तेल |
हनुमान तो पूजा, सिन्दूर चढ़ाया किस अर्थ |
मूठा बंध वार बंध घोर बन्ध, तुष्ट बन्ध माठी बन्ध मसाणी बन्ध काली भेरव कलेजा बन्ध , कालू बंध दरवाजा बंध |
इतने को बंध, माता अंजनी | पिण्ड काँचा शब्द साँचा, फुरो मंत्र – ईश्वरो वाचा |
वाचे से टले तो खारे समुद्र में टले | कुम्भी पाक नर्क में गले, लोना चमारी के कुण्ड में गले ||
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ॐ ह्रीं कमनी स्वाहा |
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ॐ गनपत वीर ! बसे मसान, जो फल माँगूँ , फल आन |
गणपत देखे गजपत डरे , गनपत के छात्र से बादशाह डरे |
मुख देखे राजा – प्रजा डरे, हाथ चढ़े सिंदूर |
ओैलिया गौरी का पूत-गणेश! गुग्गुल की धरूँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि लाये गनपत घनेरी |
जय गिरनार – पति! ओम नमो स्वाहा ||
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ॐ नमो अगिया वीर बैताल |
पैठि सातवें पाताल, लांघ अग्नि की जलती ब्रह्मा के कपाल |
मछली, चील, कागली, गूगल, हरिताल |
इन वस्ताँ को लै चलि, न लै चलै तो माता कालिका की आन ||
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ॐ नमो आदेश गुरु को| नमो सिद्ध गणपति-प्रसादात् विघ्न हर्तुं गणपत गणापत वसो मसाण|
जो फल चोहुं, सो फल आण| पंच लाडुँ, सिर सिन्दूर | रिद्धि-सिद्धि आण| गौरी का पुत्र सिंहासन बैठा|
राजा कँपे, प्रजा कँपे | द्रष्टे राजा सिम चाँपे | पंच कोस, पूर्व-पश्चिम से आण! उतर से आण, दक्षिण से आण | इतनी कर रिद्धि -सिद्धि मारे घेर द्वारआण| राजा -प्रजा सभी मेरे पड़े पाँव ,न पड़े तो लाजे मैया गौरी| जो मैं देखूँ गणेश बाला कर मन्त्र का सत की फट् – फट् स्वाहा||