मंगल गौरी का पूजन और व्रत एवं विधि - Mangal Gauree Ka Poojan Aur Vrat Evam Vidhi

मंगल गौरी का पूजन और व्रत एवं विधि

श्रावण मास में जितने भी मंगलवार आएँ, उनमें रखे गये व्रत गौरी व्रत कहलाते हैं| यह व्रत मंगलवार को रखे जाने के करण मंगला गौरी व्रत कहलाते हैं|

विधि:

प्रातः नहा-धोकर एक चौकी पर लाल कपडा बिछाना चाहिए| सफेद कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाते हैं तथा लाल कपड़े पर गेहूँ से षोडश माता बनाते हैं| चौकी के एक तरफ चावल तथा फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है| दूसरी तरफ गेहूँ रखकर कलश स्थापित करते हैं| कलश में जल रखते हैं| आटे का चौमुखी दीपक बनाकर १६-१६ तार की चार बत्तियाँ डालकर जलाते हैं| सबसे पहले गणेश जी की पूजा करते हैं| पूजन करके जल, चन्दन, रोली, मौली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलाइची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं| इसके बाद कलश का पूजन गणेश पूजन की तरह किया जाता है| फिर नौ ग्रह तथा षोडश माता की पूजा करके सारा चढ़ावा ब्रह्मण को दे देते हैं| इसके बाद मिटटी की मंगला गौरी बनाकर उन्हें जल, दूध, दही आदि से स्नान करवा कर वस्त्र पहनाकर रोली, चन्दन, सिंदूर, मेहंदी व काजल लगाते हैं| सोलह प्रकार के फूल पत्ते की माला चढ़ाते हैं| पांच प्रकार के सोलह-सोलह मेवा, सुपारी, लौंग, मेहंदी, शीशा, कंघी व चुडियाँ चढ़ाते हैं| कथा सुनकर संसुजी के पाँव छूकर एक समय एक अन्न खाने का विधान है| अगले दिन मंगल गौरी का विसर्जन करने के बाद भोजन करते हैं|

उद्यापन विधि:

श्रावण माह के मंगलवारों का व्रत करने के बाद उसका उद्यापन करना चाहिए| उद्यापन में खाना वर्जित है| मेहंदी लगाकर पूजा करनी चाहिए| पूजा चार ब्राह्मणों से करनी चाहिए| एक चौकी के चार कोनों पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए| साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिएँ| हवन के उपरांत कथा सुनकर आरती करनी चाहिए| चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रूपया व साड़ी सासुजी को देकर उनके पाँव छूने चाहिएँ| पूजा कराने वाले पंडितो को भी धोती ब अंगोछा देना चाहिए| अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन करवाकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए| सुहाग पिटारी में सुहाग का समान व साड़ी होती है| इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए|

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