विधि:
- प्रात: काल सनानादी से निवृत हो स्वछ वस्त्र धारण करे |
- शांतचित होकर परमात्मा का स्मरण करे |
- भोजन इक समय से ज्यादा नहीं करना चहिये |
- भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते कर लेना चहिये |
- यदि निराहार रहने पर सूर्ये छिप जये तो दूसरे दिन सूर्ये उदय हो जाने पर अर्ध्ये देने के बाद भोजन करना चहिये |
- व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिये |
- व्रत के दोरान नमकीन व तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण न करें |
- इस व्रत के करने से मान – सम्मान बढता है तथा शत्रुओं का सये होता है |
- आँखों को पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाए दूर होती हैं |